A Look at Cybercrime and History of Information Technology Act, 2000 | Lesson-6 |
साइबर क्राइम पर एक नजर और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 का इतिहास
| Lesson-6 |
वर्तमान में आए दिन सोशल नेटवर्किंग साइट क्राइम, ए.टी.एम. या इंटरनेट बैंकिंग के द्वारा ठगे जाने के मामले सामने आ रहे हैं। "द एसोसिएट चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्टीं ऑफ इंडिया" (एसोचैम) द्वारा 2015 में साइबर क्राइम पर जारी एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2015 में देशभर में साइबर क्राइम के मामले दोगुना तक बढ़ जाने की आशंका व्यक्त की गई थी। वर्ष 2012,2013 व 2014 तक क्रमश: 22060, 71780 और 62189 ( मई 2014 तक ) साइबर क्राइम के मामले दर्ज किये गये थे।
सूचना तकनीक कानून (Information Technology Act) 9 जनवरी 2000 में पेश किया गया था। 30 जनवरी 1997 को संयुक्त राष्टं की जनरल एसेंबली में प्रस्ताव संख्या 51/162 द्वारा सूचना तकनीक की आदर्श नियमावली ( जिसे यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑफ इंटरनेशनल टेंड लॉ के नाम से जाना जाता है) पेश किए जाने के बाद सूचना तकनीक कानून, 2000 को पेश करना अनिवार्य हो गया था। संयुक्त राष्टं की इस नियमावली में संवाद के आदान प्रदान के लिए सूचना तकनीक ( Information Technology ) या काग़ज के इस्तेमाल को एक समान महत्व दिया गया है और सभी देशों से इसे मानने की अपील की गई है।
सूचना तकनीक कानून (Information Technology Act) 2000 की प्रस्तावना में ही हर ऐसे लेन-देन को कानूनी मान्यता देने की बात उल्लेखित है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का इस्तेमाल करता है। इससे सरकारी संस्थानों में भी इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दस्तावेजों का आदान-प्रदान संभव हो सकता है और इंडियन पीनल कोड, इंडियन एविडेंस एक्ट 1872, बैंकर्स बुक्स एविडेंस एक्ट 1891 और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 अथवा इससे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े किसी भी कानून के संशोधन में भी इन दस्तावेजों का उपयोग हो सकता है। ए/आरइएस/51/162 के तहत यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑन इंटरनेशनल टेंड लॉ द्वारा अनुमोदित मॉडल लॉ ऑन इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स ( इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स से संबंधित आदर्श कानून ) को अपनी मान्यता दे दी। इस कानून में सभी देशों से यह अपेक्षा की जाती है कि सूचना के आदान-प्रदान और उसके संग्रहण (स्टोरेज) के लिए काग़ज आधारित माध्यमों के विकल्प के रूप में इस्तेमाल की जा रही तकनीकों से संबंधित कोई भी कानून बनाने या उसे संशोधित करते समय वे इसके प्रावधानों का ध्यान रखेंगे, ताकि सभी देशों के कानूनों में एकरूपता बनी रहे|
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act 2000)
17 अक्टूबर 2000 को अस्तित्व में आया। इसमें 13 अध्यायों में विभक्त कुल 94 धाराएं हैं। 17 अक्टूबर 2009 को इस कानून को एक घोषणा द्वारा संशोधित किया गया।
इसे 5 फरवरी 2009 को फिर से संशोधित किया गया, जिसके तहत अध्याय 2 की धारा 3 में इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर की जगह डिजिटल हस्ताक्षर को जगह दी गई। इसके अनुसार, सूचना के माध्यम से तात्पर्य मोबाइल फोन, किसी भी तरह का व्यक्तिगत डिजिटल माध्यम या फिर दोनो हो सकते हैं, जिनके माध्यम से किसी भी तरह की लिखित सामग्री, वीडियो, ऑडियो या तस्वीरों को प्रचारित, प्रसारित या एक से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है।
सूचना तकनीक कानून में कुछ और तथ्यों को परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार हैं, कंम्प्यूटर से तात्पर्य किसी भी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक, मैग्नेटिक, ऑप्टिकल या तेज़ गति से डाटा का आदान-प्रदान करने वाले किसी भी ऐसे यंत्र से है, जो विभिन्न तकनीकों की मदद से गणितीय, तार्किक या संग्रहणीय कार्य करने में सक्षम है। इसमें किसी कंम्प्यूटर तंत्र से जुड़ा या संबंधित हर प्रोग्राम और सॉफ्टवेयर शामिल है। सूचना तकनीक कानून, 2000 की धारा 1 1⁄421⁄2 के अनुसार, उल्लिखित अपवादों को छोड़कर इस कानून के प्रावधान पूरे देश में प्रभावी हैं। साथ ही उपरोक्त उल्लिखित प्रावधानों के अंतर्गत देश की सीमा से बाहर किए गए किसी अपराध की हालत में भी उक्त प्रावधान प्रभावी होंगे।
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